Bhakti Saagar

सकट चौथ / माघी चौथ / सकठ चौथ / संकष्टी चौथ या तिलकुटा चौथ

माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को भगवन श्र्री गणेश का जन्म हुआ था इस दिन आयु , निरोगी शरीर, पुत्र, पौत्र, धन, धान्य, ऐश्वर्या, बुद्धि- विवेक आदि की प्राप्ति के लिए निरजल रह कर भगवन गणेश का व्रत किया जाता है तथा चतुर्थी चन्द्रमाँ के साथ साथ भगवान गणेश को अर्ध देकर कथा सुनी जाती है.
कृष्णा पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी श्री गणेश चतुर्थी और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायकी श्री गणेश चतुर्थी का व्रत किया जाता है। माघ महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को भगवन श्री गणेश जी का जन्म हुआ था इसलिए इस चतुर्थी की विशेष महिमा है माघ शुक्ल चतुर्थी भी महत्त्वपूर्ण चतुर्थी मानी जाती है इसे तिल चतुर्थी कुंद चतुर्थी वैनायकी चतुर्थी के नामो से जाना जाता है.
कृष्ण पक्ष की सनक्रिस्टी चतुर्थी का पूजा समस्त सिद्धिओं क देने वाला बताया गया है। इसे माघी चौथ, सकठ चौथ , संकष्टी चौथ या तिलकुटा चौथ आदि नाम से जाना जाना जाता है साल के 12 महीना में दो चतुर्थी आती हैं एक कृष्ण पक्ष की एक शुक्ल पक्ष की लेकिन इनमें से माघ माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को सबसे प्रमुख माना गया है श्री गणेश जी का जन्म हुआ था और इस दिन माता पार्वती भगवान शिव शंकर कार्तिकेय और भगवान गणेश का पूजन खासतौर से किया जाता है। संकट चौथ या सकट चौथ मूल रूप से संतान की दीर्घायु के लिए रखा जाता है संतान में भी विशेषत: लड़कों के लिए यह रखा जाता है। इस व्रत को निर्जल किया जाता है माताएं इस व्रत को निर्जल करती हैं। सवेरे सवेरे ब्रह्म मुहूर्त में माताएं सबसे पहले स्नान करती हैं और स्नान के बाद व्रत का संकल्प लेती हैं और पूरे दिन व्रत रहते हुए विधि विधान से शिव परिवार विशेषत: गणेश जी का पूजन करती हैं, चौक पर बनी हुई एक मिट्टी की गणेश जी की मूर्ति स्थापित की जाती है और साथ मूर्ती का श्रृंगार करते हैं। मूर्ति को दूब (एक प्रकार की घास ), रोली , अक्षत, पान, सुपारी, धूप और तिल-गुड़ के लड्डू अर्पित किए जाते हैं। इस दिन “ॐ गं गणपतय नमः ” का जाप ज़रूर किया जाना चाहिए।
नैवेद्य के तौर पर तिल और गुड़ के बने हुए लड्डू विशेषत: अर्पित किए जाते हैं और अंत में व्रत कथा पढ़ी जाती है। कुछ प्रदेशों में तिल के बने हुए बकरे को दूब घास के द्वारा काटा जाता है। भूतकाल में यह बकरा असली वाला होता था और मान्यता थी कि बकरे की बलि देने से आपका व्रत पूर्ण होता है, लेकिन समय के साथ धार्मिक मान्यताओं ने बदलाव आया, जिसमें जानवर की जीव हत्या को पाप माना गया जिसके चलते बली तो रोक दी गई लेकिन तिल का बना हुआ बकरा काटा जाने लगा जो की एक निमित्त मात्र था। सारी पूजा विधि पूर्वक हो जाने के बाद चंद्रमा को जल का अर्ध्य दिया जाता है और इसके बाद व्रत का समापन होता है। व्रत तोड़ने के लिए विशेषताएं तिल के लड्डू खाए जाते हैं। अवध प्रांत में यह व्रत सवेरे तक चलता है लेकिन कुछ इलाकों में चांद निकलने के बाद चन्द्रमा को अर्ध्य देकर इस व्रत को तोड़ा जा सकता है।
ध्यान रखना योग्य बात है की चतुर्थी के दिन काले वस्त्रो का धारण नहीं करना चाहिए या काले वस्त्र धारण करने से बचना चाहिए।
ध्यान रखना चाहिए कि चंद्रमा को अर्थ देते वक्त जल की छीटें पैरों पर ना गिरे, जिसके लिए जल को किसी हरे-भरे पौधे की जड़ में अर्पित किया जा सकता है जिससे कि जल के छीटें ना उड़े और पैरों पर ना गिरे।
एक बात और ध्यान देने योग्य है की लड्डुओं का जो भोग लगता है वह तिलकुटा ही हो अन्य किसी लड्डू की इतनी वैल्यू नहीं है जितनी की तिलकुट की है एक बात ध्यान देने योग्य और है की जिस गणेश की प्रतिमा की स्थापना हो या पूजा हो वह कतई खंडित ना हो, खंडित प्रतिमा की पूजन से बचना चाहिए और एक और ध्यान देने योग्य बात है कि भगवान गणेश को तुलसी दल या केतकी के फूल नहीं चढ़ाने चाहिए,

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